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Supreme Court का वो फैसला जो पाकिस्तान का इतिहास बदल देगा, जुल्फिकार की फांसी को लेकर 44 साल बाद सबसे क्रूर तानाशाह के खिलाफ क्या आया फैसला?

साल 1981 की बात है। इस साल उसने मार्च से अगस्त का महीना जेल में गुजारा। अकेले। साल के इन दिनों इधर गजब की गर्मी पड़ती है। जेल की एक बड़ी सी कोठरी में वो अकेली। रोशनी के लिए बस एक बल्ब। वो भी शाम सात बजे बंद कर दिया जाता। जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी दूसरी बीवी नुसरत की चार औलादों में से एक- बेनजीर भुट्टो। जुल्फिकार भुट्टो ने बहुत कुछ सिखाया बेनजीर को। शायद उसी का असर था कि जब उन्हें जेल में डाला गया, तब बेनजीर अपनी मां नुसरत के साथ मिलकर पिता के लिए आवाज उठाती रहीं। 1984 की बात है। बेनजीर पाकिस्तान से बाहर रहकर ज़िया के खिलाफ, अपने पिता की फांसी के खिलाफ आवाज उठाती रहीं। फिर जब पाकिस्तान में ज़िया के खिलाफ विरोध तेज हुआ, तो 1986 में बेनजीर पाकिस्तान लौट आईं। 16 नवंबर, 1988 को चुनाव हुए। नेशनल असेंबली के चुनाव में बेनजीर की पार्टी पीपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने बेनजीर को प्रधानमंत्री मनोनीत किया। आप कह रहे होंगे कि हम आज आपको ये कहानी क्यों सुना रहे हैं। दरअसल, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 44 साल बाद आखिरकार मान लिया कि पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी की सजा देने में सुनवाई निष्पक्ष नहीं हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने कहा कि 1979 में सात जजों की पीठ ने अपनी सुनवाई के दौरान सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। इससे पहले साल 1977 में सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने भुट्टो की सरकार को हटाकर पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया था और उसी के राज में पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को फांसी की सजा दी गई थी। ऐसे आज हम आपको पूर्व प्रधानमंत्री की फांसी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताएंगे जो पाकिस्तान का इतिहास बदल कर रख देने की क्षमता रखता है। 

पाकिस्तान के कायद-ए-आवाम

5 जनवरी 1928 फर्ज की नमाज के वक़्त शहनवाज भुट्टो के घर में लड़का पैदा हुआ। लड़के का नाम जुल्फिकार रखा गया। मुसलमान के चौथे खलीफा हजरत अली की तलवार के नाम पर। जब भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो शाहनवाज भुट्टो जूनागढ़ के राजा मोहम्मद खान रसूल के दीवान बन गए। सितंबर 1947 में जुल्फिकार मुंबई से अमेरिका के लिए रवाना हुए। नवंबर 1953 में पढ़ाई लिखाई खत्म कर पाकिस्तान पहुंचे। लेकिन तब भी वह भारत के ही नागरिक थे। 1957 में जब स्कन्दर मिर्जा ने उन्हें अपनी कैबिनेट में लिया तो उसके कुछ दिनों पहले तक जुल्फिकार ने भारत की नागरिकता नहीं छोड़ी थी। इसके बाद राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए वह प्रधानमंत्री भी बन गए। उनके दौड़ में लोगों उन्हें कायदे आवाम बुलाते थे।

1977 में  कैसे लौटा सेना का राज

जिया उल हक़ दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े थे। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अफसर थे। हिंदुस्तान के आज़ाद होने के बाद इन्होंने पाकिस्तान चुना। लौट के आये तो प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इनको चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बना दिया। 5 जुलाई 1977 को जिया ने तख्तापलट कर दिया। ये हुआ 4 और 5 जुलाई, 1972 की दरम्यानी रात को। पाकिस्तान रात को जब सोया, तो लोकतंत्र था। अगली सुबह जगा, तो मालूम हुआ कि सेना का राज फिर लौट आया है। भुट्टो न केवल सत्ता से बेदखल हुए, बल्कि उन्हें जेल भी भेज दिया गया। अक्टूबर, 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ हत्या का मुकदमा शुरू किया गया। मुकदमा लोअर कोर्ट में नहीं सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुआ। उन्हें फांसी की सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने भी बहुमत निर्णय में फांसी की सजा बहाल रखी। 2 अप्रैल 1979 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में कैद थे। वह कई दिनों से भूख हड़ताल कर रहे थे। उन्हें कत्ल के सिलसिले में मौत की सजा सुनाई जा चुकी थी। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा था कि उन्हें फांसी कब दी जाएगी। उस वक्त पाकिस्तान में जिया उल हक की हुकूमत थीम अखबारों में भी भुट्टो के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था। 4 अप्रैल को भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया। भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं। दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश अमेरिका जिया के सपोर्ट में था। क्योंकि जिया अमेरिका की मदद कर रहे थे अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ। नतीजा ये हुआ कि जिया ने पाकिस्तान में एटम बम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी। 

बेटी और पत्नी को नजरबंद कर दिया गया

जुल्फिकार की बेटी और पत्नी को नजरबंद करके रखा गया। फिर निर्वासन में लंदन भेज दिया गया। जुल्फिकार का एक बेटा शहनवाज लंदन में पढ़ाई कर रहा था। पिता की मौत के बाद उसने अपने बड़़े भाई के साथ अल जुल्फिकार नाम का एक उग्रवादी संगठन बनाया। जिसका मकसद जिया सरकार को उखाड़ना था। लेकिन जुलाई 1985 में फ्रांस के एक अपार्टमेंट में शहनवाज की लाश मिलती है। दावा किया गया कि उसे जरह दे दिया गया। उधर 1986 में बेनजीर की पाकिस्तान में वापसी होती है। अंतरराष्ट्रीय दबाव में जिया उल हक ने देश में चुनाव कराने का ऐलान किया। बेनजीर चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनी। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

साल 2011 में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भुट्टो को दी गई फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी थी। इस पर कई दौर की सुनवाई भी हुई। अब पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फेयर ट्रायल नहीं दिया गया था। पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय का यह अवलोकन पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें भुट्टो की मौत की सजा की समीक्षा की मांग की गई थी। पाकिस्तान में संविधान के तहत राष्ट्रपति को ये अधिकार है कि वह जनहित से जुड़े किसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई और राय देने के लिए कह सकते हैं। 


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