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Saharanpur Lok Sabha seat: कांग्रेस-बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी बीजेपी के लिये सुनहरा मौका

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला सहारनपुर में प्रथम चरण में मतदान होना है। मुस्लिम बाहुल्य यह सीट बीजेपी के लिये हमेशा चुनौती बनी रही है। यहां तक की 2019 में मोदी लहर के बावजूद यहां से बसपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान 20 हजार वोट से विजय रहे थे। दुनिया भर में इस्लामी तालीम के लिए विख्यात दारुल उलूम संस्थान भी सहारनपुर के देवबंद कस्बे में स्थित है। सहारनपुर सीट पर पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा प्रत्याशी हाजी फजुर्लरहमान ने बड़ी जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में सपा-बसपा और कांग्रेस का गठबंधन था, ऐसे में विपक्षी गठबंधन के वे संयुक्त विजेता रहे थे। दूसरे नंबर पर बीजेपी के राघव लखनपाल शर्मा रहे थे, जिनके खाते में 4,91,722 वोट गए थे. उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को 20 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।

सहारनपुर लोकसभा के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में तीन पर बीजेपी और दो सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। बीजेपी के हिस्से में सहारनपुर नगर, देवबंद और रामपुर विधानसभा सीट आई, जबकि सहारनपुर देहात और बेहट विधानसभा सपा के हिस्से में आई। सहारनपुर सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस की जीत हुई है। 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस का ही इस सीट पर दबदबा रहा है। इस सीट से दो बार अजित प्रसाद और दो बार सुंदरलाल सांसद चुने गए। 1984 में भी कांग्रेस ने वापसी करते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2004 में सपा तो 2009 में बसपा ने यहां जीत का परचम लहराया था। 2014 की मोदी लहर में जरूर बीजेपी ने इस सीट को अपने नाम किया था। अब पिछले चुनाव में विपक्ष ने सहारनपुर से जीत दर्ज की थी।

सहारनपुर के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर मुस्लिम समुदाय के ज्यादा लोग हैं, उनकी संख्या 35 फीसदी से ज्यादा है। इस सीट पर दलित फैक्टर भी मायने रखता है और उन पर बहुजन समाज पार्टी की मजबूत पकड़ है, गुर्जर-सैनी जैसी जातियां भी निर्णायक भूमिका निभा जाती हैं। बसपा के संस्थापक कांशीराम 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां से न केवल बीजेपी के नकली सिंह हार गए थे, बल्कि तीसरे नंबर पर चले गए थे। दूसरे नंबर पर कांग्रेस के रशीद मसूद थे। 1996 और फिर 1998 में बीजेपी से नकली सिंह सांसद बने थे। इसके बाद 2014 तक बीजेपी के लिए सूखा रहा। 2014 में हुए चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी के राघव लखनपाल ने जीत हासिल कर सूखा खत्म किया था। इस बार भी बीजेपी ने राघव लखनपाल पर भरोसा जताया है।

सहारनपुर लोकसभा सीट पर 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ। 1952 में कांग्रेस के अजित प्रसाद जैन पहली बार सहारनपुर लोकसभा सीट से सांसद बने थे। उस समय हरिद्वार लोकसभा सीट भी सहारनपुर के अंतर्गत आती थी। हरिद्वार लोकसभा सीट से कांग्रेस के सुंदरलाल ने जीत हासिल की थी। 1962, 1967 और 1971 में भी कांग्रेस के सुंदरलाल सांसद बने। 1977 और 1980 में जनता पार्टी के रशीद मसूद विजेता रहे। 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर से बाजी मारी और यशपाल सिंह निर्वाचित हुए। 1989 और 1991 में जनता दल की तरफ से रशीद मसूद के सिर सांसद का ताज सजा। 1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की तरफ से नकली सिंह ने बाजी मार ली, लेकिन बीच में ही सरकार गिर गई। 1998 में फिर से नकली सिंह सांसद बने। तब भी सरकार ज्यादा नहीं चली. 1999 में बसपा का पहली बार यहां पर खाता खुला। मंसूर अली खान सांसद बने। इसी तरह सपा की तरफ से 2004 में रशीद मसूद को सांसद चुना गया। 2009 में बसपा के जगदीश सिंह राणा, 2014 में भाजपा से राघव लखनपाल और 2019 में एक बार फिर से बसपा के हाजी फजर्लुरहमान सांसद बने।

भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा ने बताया कि वह इस चुनाव में ढाई से तीन लाख वोट से विजयी हो रहे है और कोई उनकी टक्कर में नहीं है। उधर कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद ने कहा कि इस समय लोकतंत्र की सीधे-सीधे हत्या हो रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल भेज दिया। ऐसी परिस्थितियों में जब देश का संविधान खतरे में हो तो हम लोग चुनाव में उतरें हैं और संविधान की रक्षा करें। वहीं उन्होंने इस चुनाव को इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच बताया। वहीं उन्होंने बसपा को एनडीए के साथ गठबंधन में बताया और बसपा बीजेपी को फायदा दे रही है। बसपा प्रत्याशी माजिद अली ने अपना मुकाबला बीजेपी से बताया। उन्होंने बताया कि 2019 गठबंधन में भी सपा के पास हमारा वोटबैंक था और उन्होंने सपा को इस दौड़ से बाहर बताया। सहारनपुर लोकसभा सीट पर कुल वोटर 18.50 लाख वोटर हैं जिसमें 9.77 लाख पुरूष और 8.72 लाख महिलाएं शामिल हैं। इस बार भी बीजेपी के लिये यहां चुनौती मजबूत हैं। यहां से इंडी गठबंधन के तहत कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद मैदान में है। उनको समाजवादी वोटर कितना का कितना साथ मिलता है, यह देखने वाली बात है। यहां बसपा और कांग्रेस दोंनो के मुस्लिम उम्मीदवार होने की वजह से मुस्लिम वोट बंटने की उम्मीद है जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।

– अजय कुमार


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