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Veto नहीं मिला तो UN 2.0 बना लेगा भारत? मोदी के गो टू मैन ने परमानेंट सीट को लेकर बना लिया फुलप्रूफ प्लान, दुनिया हैरान

तुर्की-नेपाल जैसे देशों में आए भूकंप पीड़ितों की मदद का मामला रहा हो या फिर कोरोना की वैक्सीन दुनिया में कई देशों को देने की बात रही हो। या फिर जीरो हंगर का मुद्दा रहा हो। भारत ने जिस तरह से हर परिस्थिति में आगे रहने का साहस दिखाया है, उसका यूएन भी कायल हो चुका है। इसी सिलसिले में बड़ी खबर ये है कि संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी मिशन न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल टू के अनुरूप जीरो हंगर का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में भारत के महत्वपूर्ण योगदान पर एक इवेंट किया जाएगा। इसमें पीएम मोदी द्वारा साझा किया गया एक संदेश पढ़ा जाएगा। रूस यूक्रेन युद्ध से लेकर इजरायल हमास युद्ध तक भारत पीड़ितों को मानवीय सहायता पहुंचाता रहा है। कई बार आपने ये सुना होगा कि पिछले कई सालों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट को लेकर भारत अपनी दावेदारी जताता आया है। आपने ये भी जानते होंगे की यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य रूस, चीन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन में से चार देश हमेशा भारत को स्थायी सदस्यता देने के लिए राजी हो जाते हैं। लेकिन चीन हर बार ये सीट नहीं मिलने देता है। वैसे पूरा सच ये भी है कि भारत का पुराना दोस्त रूस और मोदी के मित्र मैक्रों के देश फ्रांस ही है जो भारत की दावेदारी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ा रहता है। लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका की बैक डोर कोशिश उतनी मजबूत नहीं होती है। लेकिन सात दशक पहले बने इस सगंठन अब नई चुनौतियों के बीच नए रिफॉर्म को लेकर भी चर्चा होती रहती है। विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान के बाद वीटो पावर को लेकर बहुत बहस छिड़ी है। कई देशों ने ये तो कह दिया कि भारत को वीटो पावर मिलना चाहिए। 

एस जयशंकर ने क्या कहा

गुजरात के सूरत में विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर ने कहा कि ‘भारत को इस बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट मिलेगी, लेकिन हमें कड़ी मेहनत करनी होगी।’ स्पष्ट रूप से उन्होंने इस मामले में दृढ़ संकल्प व्यक्त किया और यह स्वीकार करने के लिए पर्याप्त व्यावहारिक थे कि और अधिक करने की आवश्यकता है, संभवतः इसका मतलब यह है कि भारत को पी-5 पर और भी अधिक काम करने की जरूरत है, जैसा कि वे अभी हैं, और महासभा (जीए) के साथ काम करना है। अगर बात उस तक पहुंच गई। मंत्री जयशंकर के पश्चिम को चिढ़ाने के आक्रामक तरीके यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद के महीनों और वर्षों में अधिक बार दिखाई दे रहे हैं। जिस सूक्ष्म और सौम्य राजनयिक के रूप में वह जाने जाते थे, वह वैश्विक मंच पर नए भारत की आवाज बनकर उभरे हैं, जहां भारत की सुप्रसिद्ध शांतिवादी आवाज, जिसे कई बार दूसरों द्वारा कमजोरी समझ लिया जाता है, एक वैश्विक राजनेता के रूप में विकसित हुई है। 

वीटो पॉवर क्या होता है

वीटो एक लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है कि मैं अनुमति नहीं देता। या किसी काम के लिए निषेध करना। यदि किसी देश के पास वीटो है तो वो किसी भी प्रस्ताव के विरोध में अपनी सहमति न रखते हुए वोट कर सकता है। ये एक हिसाब से उस देश का पावर होता है जिसका इस्तेमाल करने वो अपना विरोध वोट डाल कर प्रकट कर सकता है। जैसा की आप जानते हैं कि सुरक्षा परिषद के कुल सदस्य देशों की संख्या 15 है, जिसमें से पांच देश इसके स्थायी और बाकी 10 अस्थायी सदस्य हैं। जिनका कार्यकाल 2 साल का रहता है। 

किसी देश को वीटो पावर मिलना कितना जरूरी है

किसी देश को वीटो पावर मिलेगी या नहीं ये दो प्रकार से तय होता है। वीटो पावर देने या नहीं देने का फैसला सदस्य देश करते हैं। यूएनएससी में 15 देश हैं और वीटो पावर को लेकर कितने देश ने उसके पक्ष में वोट किया है ये इस पर निर्भर करता है। वोट पावर के लिए 9 मेंबर्स की अनुमति चाहिए होती है। जिसके लिए वोटिंग हो रही है उसके लिए 10 वोट चाहिए होती है। पांच परमानेंट मेबर के वोट चाहिए होते हैं। किसी देश को वीटो पावर के लिए 2/3 देशों के सकारात्मक वोट के साथ उस देश के पास अधिक धन संपदा होनी चाहिए। ताकी वो कई देशों की सुरक्षा में अपनी सहभागिता दे सके। 

पी-5 ने सुरक्षा परिषद पर कर लिया कब्जा

सूरत में स्थानीय बुद्धिजीवियों के साथ अपनी बातचीत के दौरान, विदेश मंत्री ने यह भी संकेत दिया कि कैसे पी-5 ने सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) पर कब्ज़ा कर लिया है, जिसे दुनिया भर में ‘सुपर-गवर्नमेंट’ के रूप में देखा और स्वीकार किया जाता है। जैसा कि उन्होंने बताया पी-5 सदस्यों ने खुद को चुना और खुद को संरक्षक के रूप में नियुक्त किया, हालांकि दुनिया के अभिभावक देवदूत नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे कई अलग-अलग तरीकों से कई मामलों में विभाजित नजर आए। चाहे वो क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में उनके रुख और प्राथमिकताओं ने पहले यूएनएससी और उनके प्रतिस्पर्धी प्रचार, अभियान, वित्त पोषण और सदस्य-राष्ट्रों को हथियारबंद करने के कारण बड़े यूएनजीए को विभाजित किया था। भी, शीत युद्ध के दौर में विभाजन रेखाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थीं।

अमेरिका कर रहा भारत के साथ खेल

दशकों से भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के लिए अपने-अपने मामले पेश करने के लिए एक साथ आए हैं। यहां भी क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में विकृति है, क्योंकि लैटिन अमेरिका से कम से कम एक, पश्चिम एशिया से एक (इज़राइल नहीं) और अफ्रीका से दो को क्रम में रखा जाएगा। क्या वर्तमान समूह वैश्विक आवाज़ का विस्तार करके इतना ही कर सकता है? संयोग से जैसा कि मंत्री जयशंकर ने उल्लेख किया है, मिस्र ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावों का एक नया सेट पेश करने के लिए जापान और जर्मनी के साथ सहयोग किया है। क्या मिस्र अरब-इस्लामी राष्ट्रों, अफ़्रीका या दोनों का प्रतिनिधित्व करता है? जब भी भारत और बाकी देशों ने संयुक्त राष्ट्र के अंदर और बाहर सुधार का झंडा लहराया है, तीन पश्चिमी सदस्यों, अर्थात्, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने प्रस्तावित चर्चा को सुधारों में परिवर्तित करके पहल को विफल करने की कोशिश की है। निःसंदेह, यह उस से भी बदतर है जो अमेरिका ने अधिक स्थायी सदस्यों को शामिल करने के लिए यूएनएससी का विस्तार करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन वीटो अधिकार के बिना। यही वह शरारत है जो अमेरिका कर रहा। यदि आप वीटो के बिना स्थायी सदस्य की स्थिति के बारे में बात करते हैं, तो दूसरा पक्ष विभाजित हो जाएगा। उनकी सामूहिक मांग कम हो जाएगी और गायब हो जाएगी, जैसा कि पिछले एक या दो दशक में लगभग आधा दर्जन बार हुआ है। इसलिए ऐसा लगता है कि सुधारों और विस्तारित सदस्यता के लिए यूएनएससी का रास्ता अपनाना कोई स्वागतयोग्य रास्ता नहीं है। जीए सदस्यों को तब पता चल जाएगा कि अतिरिक्त सदस्यों में से बहुत से, यदि सभी नहीं, तो ग्लोबल साउथ से संबंधित हैं और/या उसका प्रतिनिधित्व करते हैं। 


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