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केवल कमल! भारत में भी आ सकता है वन पार्टी सिस्टम? जिनपिंग-पुतिन की तरह मोदी थे, हैं और रहेंगे कितना मुमकिन

शिवसेना उद्धव गुट के नेता आदित्य ठाकरे का एक इंटरव्यू सामने आया जिसमें उन्होंने भाजपा द्वारा भारत को चीन की तरह एकदलीय राष्ट्र बनाने का दावा किया। यही बात उनके पिता और शिवसेना उद्धव (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी यवतमाल जिले के दिग्रास में एक रैली को संबोधित करते हुए दोहराई और कहा कि भाजपा की वन नेशन वन पार्टी की योजना को कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा और दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा खत्म हो रहा है। ठाकरे ने कहा कि एक राष्ट्र, एक कानून को समझा जा सकता है। लेकिन हम भाजपा की एक राष्ट्र, एक पार्टी योजना को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने इससे पहले अप्रैल के शुरुआती महीने में  दावा किया कि भाजपा देश में रूस और चीन जैसा शासन दोहराना चाहती है। तमाम चर्चाओं के बीच आज आपको बताते हैं कि पॉलिटिकल पार्टी सिस्टम क्या होता है, भारत के परिपेक्ष्य में वन पार्टी सिस्टम का मतलब क्या है और ये चीन के पार्टी सिस्टम से कितना भिन्न है। 

भारत और चीन, गांधी और माओ

चीन के कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी। कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और यह भारत की भारतीय जनता पार्टी (BJP) की आधी है।साल 1917 में सोवियत संघ में लेनिन के नेतृत्व में अक्टूबर समाजवादी क्रांति की जीत के बाद कम्युनिस्ट विचारधारा पूरे चीन में फैल गई। जिसके बाद चीन के विचारकों को यह लगने लगा की देश को एकीकृत करने के लिए मार्क्सवाद ही सबसे ताकतवर हथियार है। 1919 में चीन में साम्राज्यवाद और सामंतवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इसी दौरान वहां मजदूर वर्ग एक बड़ी ताकत बनकर उभरा। माओ तुंग ने एक जुलाई 1921 को सीपीसी की स्थापना की थी। साल 1937 में चीन पर जब जापान ने आक्रमण कर दिया तब कम्युनिस्ट और राष्ट्रवादी सेना आपस मे मिल गई। लेकिन जापान के हारने के बाद इन दोनों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इस दौरान राष्ट्रवादी सेना पर कम्युनिस्ट सेना भारी पड़ी और 1949 में पूरे चीन पर माओत्से तुंग का शासन हो गया। 1949 में बना चीन जिसकी पहचान एक देश से ज्यादा कुछ चेहरों से होती रही। माओत्से तुंग चीन के पहले राष्ट्रपति और दुनिया के कई हिस्सों के लिए एक तानाशाह। 1 अक्टूबर 1949 को जब माओ ने चीन की आजादी की घोषणा की तो खुद को उस देश का सबसे बड़ा नेता भी घोषित कर दिया था। चीन में इतना सबकुछ हो रहा था तो उसके पड़ोस भारत में क्या चल रहा था। जब चीन में गृह युद्ध छिड़ा था उसी क्षण, महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में बंबई और कलकत्ता के अंग्रेजी बोलने वाले वकीलों के प्रभुत्व वाली कांग्रेस पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी जन पार्टी बन गई।1950 तक, भारत और चीन दोनों ने विदेशी शक्तियों को बाहर कर दिया था और जहां भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गया। वहीं चीन माओ की किसान सेना या पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बढ़ते कैडरों की बदौलत एक क्रांतिकारी राज्य बन गया। आने वाले दशकों में भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र बन गया, जबकि इसके उलट चीन में सिंगल पार्टी सिस्टम 

सिंगल पार्टी सिस्टम-  इस सिस्टम में एक ही पॉलिटिकल पार्टी होती है, जिसका शासन होता है। ये अधिनायकवादी सिद्धांत सबसे पहले राजतंत्रों और में पाया जाता था। बाद में तानाशाही हुई और अब यह व्यवस्था कुछ लोकतांत्रिक देशों में मौजूद है। हालाँकि, ऐसे शासनों में भी केवल दिखावा दिखाने के लिए चुनाव कराए जाते हैं। मतदाता की पसंद केवल एक उम्मीदवार तक सीमित है। चीन में कम्युनिस्ट शासन के तहत एकदलीय शासन है तथा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो का प्रमुख ही राष्ट्रपति बनता है। चीन में राष्ट्रपति के चुनाव में सीधे जनता मतदान नहीं करती। उदाहरण के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को लेते हैं जिसमें पांच अलग-अलग बॉडी होती है और इसमें पॉवर हरारकी का सिस्टम फॉलो होता है। मतलब सबसे ताकतवर सबसे ऊपर और उसमें कम ताकतवर उससे नीचे। पार्टी में सबसे ताकतवर पद जनरल सेक्रेटरी का होता है। इस पद के लिए हर पांच साल में चुनाव होते हैं। 

बाई पार्टी सिस्टम- इस सिस्टम में दो पॉलिटिकल पार्टियां होती है। पार्टियों को मतदाताओं का पर्याप्त समर्थन होता है। उनमें से एक सत्ताधारी पार्टी है, यह इस पर निर्भर करता है कि चुनाव में किस पार्टी को बहुमत मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम बाई पार्टी सिस्टम के उदाहरण हैं। अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियाँ मुख्य पार्टियाँ हैं, और यूके में लेबर पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी दो मुख्य पार्टियाँ हैं।

मल्टी पार्टी सिस्टम- इस सिस्टम में कई पॉलिटिकल पार्टियां होती है। भारत और कई यूरोपीय देशों में बहुदलीय प्रणाली है। बहुदलीय में इस प्रणाली में कई पार्टियाँ मिलकर गठबंधन सरकार बनाती हैं और अपनाती हैं। 

भारत में एक ही पार्टी का होगा राज? 

भारत में पहली ऐसी स्थिति नहीं है कि किसी एक पार्टी को लगातार दो चुनाव में जीत मिली हो। न ही कोई ऐसा पहली दफा देखने को मिल रहा है कि किसी एक पार्टी का कई सारे राज्यों में शासन है। जवाहर लाल नेहरू के वक्त में कांग्रेस देश के अंदर सबसे मजबूत स्थिति में थी और उनके सामने विपक्ष महज औपचारिकता की भूमिका में था। हमें ये समझने की आवश्यकता है कि लोकतंत्र में एक दल के प्रभुत्व की व्यवस्था कोई नई नहीं है। नेहरू एरा को भी स्वर्णिम काल नहीं कहा जा सकता। वहां भी नागरिक अधिकारों पर कुछ पाबंदियां लगाई गई थी। उस समय भी केरल की सरकार बर्खास्त की गई। उस वक्त बहुत सारे राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थी। 

रूस और चीन से तुलना कितनी जायज

रजनी कोठारी ने जब कांग्रेस प्रणाली शब्द का इस्तेमाल किया तो उस प्रणाली के भीतर अलग अलग स्वर भी उसमें उभरकर सामने आई। लेकिन धीरे धीरे इस प्रणाली की खामियां भी सामने आईं। इसमें प्रभुत्वशाली जातियां तो आ जा रही थी लेकिन पिछड़ी जातियों को उतना स्थान नहीं मिल पा रहा था। फिर राममनोहर लोहिया ने उन्हें गोलबंद करके एक वैकल्पिक राजनीति तैयार की थी। चीन और रूस की तुलना भारत से करने से पहले वहां के शासन व्यवस्था को देखना होगा। चीन में एकल पार्टी व्यवस्था है और छोटी छोटी पार्टियां वहां अस्तित्व में तो हैं लेकिन सरकार बनाने की ताकत केवल कम्युनिस्ट पार्टी के पास है। वहीं रूस में पुतिन पिछले दो दशक से ज्यादा वक्त से सत्ता के शीर्ष पर बने हुए हैं। विरोधी या विपक्ष की आवाज उठाने को लेकर अगर हम एलेक्सी नवलनी के उदाहरण पर गौर करें तो सारे जवाब अपने आप मिल जाएंगे। लेकिन भारत में इस तरह की बात करना कल्पना से परे लगता है। 


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