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Tibet को लेकर America ने क्यों कर ली China को घेरने की तैयारी? Nancy Pelosi की Dalai Lama से मुलाकात के मायने समझिये

अमेरिका ने चीन को घेरने के लिए जो योजना बनाई है उसके तहत उसने तिब्बत को लेकर एक विधेयक पारित कर दिया है। माना जा रहा है कि अमेरिका की इस योजना को भारत का भी समर्थन है और इस आशंका के चलते चीन इस समय परेशान नजर आ रहा है। चीन को डर है कि यदि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाथ से तिब्बत फिसला तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है इसलिए वह अमेरिका को सीधे-सीधे और भारत को अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी देने में जुट गया है।

लेकिन चीन की धमकियों से बेपरवाह नजर आ रहे अमेरिका ने तिब्बत को लेकर जो बड़ा फैसला किया है उस पर आगे बढ़ने के लिए वह अडिग नजर आ रहा है। यदि तिब्बत पर अमेरिकी नीति बदली तो क्षेत्र में इसका बड़ा असर पड़ने की संभावना है। हम आपको बता दें कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी और अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष माइकल मैककॉल के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा से मुलाकात करने के लिए हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला पहुंचा तो चीन ने आंखें लाल कर लीं। लेकिन इसकी परवाह किये बिना नैन्सी पेलोसी ने भारत की धरती से चीन को तगड़ी चेतावनी दे डाली। हम आपको याद दिला दें कि 2022 में जब नैन्सी पेलोसी ताइवान के प्रति समर्थन जताने के लिए वहां की यात्रा पर थीं तब भी चीन ने गहरी नाराजगी जताई थी और अब जब पेलोसी तिब्बत के साथ समर्थन जताने के लिए दलाई लामा से मिलने पहुँचीं हैं तब भी चीन आग बबूला हो गया है।

नैन्सी पेलोसी ने क्या कहा?

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात के बाद नैन्सी पेलोसी ने चीन को कड़े शब्दों में दिए गए संदेश में कहा कि “परिवर्तन होने वाला है”। उन्होंने कहा कि “परम पावन दलाई लामा, ज्ञान, परंपरा, करुणा, आत्मा की पवित्रता और प्रेम के अपने संदेश के साथ लंबे समय तक जीवित रहेंगे और उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी। लेकिन आप (चीन के राष्ट्रपति) चले जाएंगे और कोई भी आपको किसी भी चीज का श्रेय नहीं देगा।” पेलोसी की शी जिनपिंग के लिए आलोचनात्मक टिप्पणी तब आई जब वह चीनी राष्ट्रपति और दलाई लामा की आभा की तुलना कर रही थीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि दलाई लामा का संदेश, ज्ञान और करुणा हमेशा बनी रहेगी। दूसरी ओर, यह धरती छोड़ने के बाद उनके (शी के) सभी काम किसी काम के नहीं रहेंगे।

अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल पर एक नजर

हम आपको बता दें कि मैककॉल के अलावा शिष्टमंडल में अमेरिकी संसद के छह और प्रमुख सदस्य शामिल हैं जिनमें- नैन्सी पेलोसी, मैरिएनेट मिलर, ग्रेगरी मीक्स, निकोल मैलियोटैकिस, जिम मैकगवर्न और एमी बेरा शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल इसलिए धर्मशाला आया है क्योंकि हाल ही में अमेरिकी संसद ने एक विधेयक पारित किया है जिसमें मूल रूप से कहा गया है कि अमेरिका, तिब्बत के लोगों के साथ खड़ा है। माना जा रहा है कि इस प्रतिनिधिमंडल की रिपोर्ट के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। हम आपको यह भी बता दें कि पेलोसी ने इस विधेयक के बारे में कहा है कि यह चीनी सरकार के लिए एक संदेश है कि इस मुद्दे पर हमारी सोच और समझ में स्पष्टता है।

माइकल मैककॉल ने क्या कहा?

हम आपको बता दें कि माइकल मैककॉल के नेतृत्व में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को हिमालयी शहर धर्मशाला पहुंचा था, जहां दलाई लामा 1960 के दशक से रह रहे हैं। प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत के लिए स्वायत्तता पर जोर दे रही निर्वासित तिब्बती सरकार के कार्यालयों का दौरा किया और फिर दलाई लामा से मुलाकात की। मैककॉल ने बाद में मीडिया को बताया कि चीनी अधिकारियों ने हमारे प्रतिनिधिमंडल को एक पत्र भेजा था जिसमें “हमें यहां नहीं आने की चेतावनी दी गई थी।” उन्होंने कहा कि लेकिन अमेरिका तिब्बत के आत्मनिर्णय के अधिकार के मामले में उसके साथ खड़ा है। उन्होंने कहा, “अमेरिका, खूबसूरत तिब्बत को हमेशा की तरह एक शक्तिशाली ताकत बने रहने में समर्थन देगा।”

इस मुलाकात के मायने

हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिकी अधिकारी अक्सर 88 वर्षीय दलाई लामा से मिलते रहे हैं लेकिन इस बार की मुलाकात इस मायने में खास थी कि अमेरिकी संसद ने तिब्बत को लेकर अहम विधेयक पारित कर दिया है और इसके जरिये अमेरिका के मन में ऐसा कुछ चल रहा है जिसकी भनक शायद दलाई लामा को लग गयी है। इसलिए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की दलाई लामा से मुलाकात के दौरान बड़ी बात यह रही कि एक वरिष्ठ अमेरिकी सांसद ने जब तिब्बत के लिए अमेरिका के समर्थन के बारे में बताया तो दलाई लामा को यह मंजूर नहीं था। साथ ही नैन्सी पेलोसी ने दावा किया है कि तिब्बती नेता दलाई लामा ने चीनी सरकार की आलोचना का समर्थन नहीं किया और बल्कि नैन्सी से आग्रह किया कि वह प्रार्थना करें कि चीन को उसके नकारात्मक रवैये से छुटकारा मिले।

चीन की प्रतिक्रिया

हम आपको बता दें कि यह यात्रा तब हो रही है जब अमेरिका और चीन ने तनावपूर्ण संबंधों को सामान्य बनाने के लिए हाल के महीनों में बातचीत बढ़ा दी है। लेकिन यात्रा और विधेयक के विषय पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के दौरे पर टिप्पणी व्यक्त करते हुए एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “14वें दलाई लामा कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि धर्म की आड़ में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लगे एक राजनीतिक निर्वासित व्यक्ति हैं।” चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम अमेरिकी पक्ष से आग्रह करते हैं कि वह दलाई लामा के समूह की चीन विरोधी अलगाववादी प्रकृति को पूरी तरह से पहचाने। चीनी प्रवक्ता ने कहा कि ज़िज़ांग से संबंधित मुद्दों पर अमेरिका ने चीन के प्रति जो प्रतिबद्धताएँ व्यक्त की हैं, उनका सम्मान करते हुए दलाई लामा के समूह के साथ कोई संपर्क नहीं रखना चाहिए। उल्लेखनीय है कि चीन आधिकारिक तौर पर तिब्बत को ज़िज़ांग कहता है। इसके साथ ही चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वह अमेरिकी सीनेट और प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित किये गए तिब्बत नीति विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करें।

तिब्बत की निर्वासित सरकार का बयान

दूसरी ओर, अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद तिब्बत की निर्वासित सरकार में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्शे ने कहा कि तिब्बत की स्थिति को “अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के लैंस” से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि तिब्बती जीवन शैली की याद दिलाने के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तिब्बत अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है क्योंकि चीन इस क्षेत्र को अपने में मिला रहा है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि दुनिया के नेता तिब्बत के लिए खड़े होंगे, विशेष रूप से चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए चीनी नेतृत्व पर दबाव डालेंगे।

भारत-अमेरिका संबंध

बहरहाल, यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इस प्रतिनिधिमंडल की भारत यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वाशिंगटन और नई दिल्ली अपने संबंधों को गहरा कर रहे हैं। भारत और अमेरिका दोनों ही चीन को खतरा मानते हैं इसलिए इन दोनों देशों के बीच गहराते संबंधों पर ड्रैगन की नजर बनी रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी जीत के तत्काल बाद जिस तेजी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन दिल्ली आये और भारत के साथ रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग के विस्तार पर चर्चा की उससे चीन की भौंहें तन गयी हैं। अब अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने भारत आकर तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चीन की बेचैनी और बढ़ा दी है।

-नीरज कुमार दुबे


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