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भूख से लड़े, गरीबी से ली टक्कर, पापा ट्रक ड्राइवर और बेटे ने किया IIM क्लियर

भूख हर किसी को तोड़ती है। खराब हालात में अच्छा-खासा इंसान ने सही सलामत गलत तरीके से अपना रास्ता बना लिया है, लेकिन आंध्र प्रदेश में रहने वाले नागा सुमंत ने किस्मत की रूढ़ियों को अपनी मेहनत से पलट दिया। देखने पर पता चला कि वह ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह की आर्थिक परेशानी को अपने सपनों का पहिया थमाने नहीं दिया और अब आईआईएम लखनऊ का एग्ज़ाम क्लियर कर लिया है। आइए आपको सुमंत की जिंदगी के सफर से बने ढांचे बनाते हैं।

ऐसी रही सुमंत की जिंदगी

आईआईएम कम्युनिटी क्लियरेंस करने वाले सुमंत की जिंदगी आसान नहीं है। उनके पिता ट्रक ड्राइवर हैं। वह सिर्फ इतना ही काम करते हैं कि उनके घर का व्यवसाय भर में रहता है, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति लगभग असमंजस में ही रहती है। कई बार इतने बुरे हालात होते हैं कि उनके पार्टनर का पेट भी सोना बंद हो जाता है। इसके बावजूद सुमंत ने अपने पिता का सपना साकार कर दिया, जो कई सालों तक उन्हें सोने नहीं दे रहा था।

पापा ने भी दिया पूरा साथ

सुमंत नागा के पिता सुब्बरायुडु गामादुला ने अपने बेटे के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने पूरी जिंदगी छुट्टियां बिताकर अपना घर चलाया और उनकी मदद से बेटे की पढ़ाई को कभी अटकाया नहीं। नागा सुमंत की कलाकारी उनके पिता की मेहनत के बिना कभी पूरी नहीं हो पाती। बता दें कि सुमंत की मां लक्ष्मी एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं।

पापा के संघर्ष ने दिया बुढ़ापा

सुमंत का कहना है कि उन्होंने अपने पिता के संघर्षों को देखा है। फसल कटाई के समय वह काफी दिन तक हमसे दूर रहे थे। नागा शुरुआत से ही एक होनहार छात्र रहे। उन्होंने पांचवीं कक्षा से लेकर ग्रेजुएशन तक लगातार स्कॉलरशिप हासिल की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई में भी उन्हें स्कॉलरशिप मिली थी। एआईआईटी श्रीकाकुलम से बीटेक कर चुके सुमंत शिष्य हैं कि उन्हें अपनी जिंदगी में उनके पिता के संघर्ष ने ही याद दिलाया।

ऐसे हुआ ऑनलाइन की दिशा

सुमंत ने इंजीनियरिंग में 8.8 सीजीपीए हासिल किया था। जबकि 10वीं में उन्होंने 9.8 सीजीपीए और 12वीं में 8.8 सीजीपीए हासिल किया था। सुमंत की रुचि का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के अंतिम बैच में उन्होंने मद्रास के डेटा साइंसेज और कोचिंग कोर्स में दाखिला लिया। जहां उन्हें भारतीय कला संस्थान ऑफ स्ट्रेंथ में जगह बनाने के लिए होने वाली परीक्षा के बारे में पता चला। हर दिन 12 घंटे की पढ़ाई से उनका नंबर 97 प्रतिशत के आसपास बना रहा। गणित उनकी संख्या 1 शक्तियों में से एक है। सुमंत अपनी सफलता का श्रेय अपने अंक को देते हैं। उनका कहना है कि वह भी एमबीए कर चुके हैं साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से भी अपनी मदद की जरूरत है।

ये है सुमंत का पहला मकसद

सुमंत के सबसे पहले ईसाई परिवार की स्थिति में सुधार किया गया है। उनका कहना है कि उनके पास ढेर सारी दवाएँ हैं, लेकिन उन्हें अनुभव की ज़रूरत है। आईआईएम लखनऊ के इंटेल अफेयर्स के चेयरपर्सन प्रियंका शर्मा ने भी जताई खुशी जाहिर की। उन्होंने बताया कि ईडब्ल्यूएस कोटा से आने वाले विद्यार्थियों को विशेष सहयोग दिया जाता है, जिसमें नाइवेल एड स्कॉलरशिप आदि शामिल है।

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