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ऐसे हुई थी स्थापना जगन्नाथ पुरी धाम की, सदियों तक रेत में क्यों दबा रहा मंदिर? रत्न भंडार खुलते ही उड़े सबके होश

जिनका रूप अति शांत मय है, जो शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं। जिनकी भूमि से कमल निकलता है। जो गगन के समान हर जगह व्याप्त हैं। वो भय का नाश करते हैं। श्री हरि विष्णु समस्त जगत के आधार हैं। वैकुंठ लोक के स्वामी श्री हरि विष्णु धरती के कल्याण के लिए भारत वर्ष की भूमि पर वास करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बैकुंठ लोक धरती पर भी है। जिसे हम जगन्नाथपुरी के नाम से जानते हैं। आषाढ़ माह में गवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। आप भारत के किसी भी कोने में क्यों न रहते हों आपकी ये इच्छा जरूर रही होगी कि जिंदगी में एक बार  जगन्नाथ मंदिर जरूर जाएं। भारत का हर हिन्दू ये चाहता है कि एक बार उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन का सौभाग्य जरूर प्राप्त हो। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार 46 साल बाद  एक बार फिर खोला गया। 12वीं सदी के इस मंदिर की जूलरी और कीमती सामानों की सूची बनाने के साथ ही भंडार गृह की मरम्मत के लिए रत्न भंडार को खोला गया है। अधिकारियों ने बताया कि इससे पहले 1978 में इसे खोला गया था। अधिकारियों ने बताया कि बाहरी रत्न भंडार खोलते समय 11 लोग मौजूद थे, जिसमें उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश विश्वनाथ रथ, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीक्षक डीबी गड़नायक और पुरी के नाममात्र राजा गजपति महाराज के एक प्रतिनिधि शामिल थे। अरबिंद पाधी ने बताया कि रत्न भंडार खोला गया है, लेकिन कीमती सामान की तत्काल सूची नहीं बनाई जाएगी। सामानों को अस्थायी रूप से सुरक्षित कमरे में रखा जाएगा। वहां CCTV कैमरे समेत सर्विलांस के सभी जरूरी इंतजाम किए गए है।

जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार

जगन्नाथ मंदिर के उत्तर की ओर जगमोहन (प्रार्थना कक्ष) के बगल में स्थित, रत्न भंडार में सदियों से भक्तों और पूर्व राजाओं द्वारा हिंदू देवताओं जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को चढ़ाया गया सोना और आभूषण शामिल हैं। रत्न भंडार में कीमती आभूषणों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। भीतर भंडार (आंतरिक कक्ष) में रखे गए आभूषण जिनका कभी उपयोग नहीं किया जाता है, वे जो बहार भंडार (बाहरी कक्ष) में रखे जाते हैं और दैनिक उपयोग किए जाते हैं, और वे जो प्रमुख त्योहारों और विशेष अवसरों के लिए उपयोग किए जाते हैं। 

रत्न भंडार कब खोला गया है?

12वीं सदी के इस मंदिर के रत्न भंडार को पहली बार 1905 में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा ‘निरीक्षण’ के लिए खोला गया था। दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, इसका आविष्कार 1926 में किया गया था। आखिरी सूची 1978 में तत्कालीन ओडिशा के राज्यपाल भागवत दयाल शर्मा की अध्यक्षता में एक पैनल की देखरेख में की गई थी। रत्न भंडार में सोने के आभूषणों और अन्य कीमती सामानों की एक विस्तृत सूची तैयार की गई थी। उस समय यह संपूर्ण अभ्यास लगभग 70 दिनों में पूरा किया गया था।

साल 2018 में खजाना खोलने की क्या है कहानी

साल 2018 में पता चला कि रत्न भंडार की चाबियां खो गईं हैं। विपक्षी भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर नवीन पटनायक सरकार पर हमला किया। तत्कालीन ओडिशा सीएम ने न्यायिक जांच का आदेश दिया और सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रघुबीर दास के नेतृत्व वाली समिति ने उस वर्ष नवंबर में राज्य सरकार को अपनी 324 पेज की रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के निष्कर्ष अभी जनता के सामने नहीं आये हैं। इस साल ओडिशा में एक साथ होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘लापता’ चाबियों का मुद्दा उठाया था। कटक में एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने पटनायक सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि कटक में एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने पटनायक सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यहां तक ​​कि बीजेडी शासन में जगन्नाथ मंदिर भी सुरक्षित नहीं है. पिछले छह साल से श्रीजगन्नाथ के ‘रत्न भंडार’ की चाबियां गायब हैं। बीजद के नेता इस साजिश में शामिल हैं। 

तीन स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर अपनाए गए है 

1. रत्न भंडार खोलने का

2. अस्थायी रत्न भंडार के प्रबंधन का 

3. कीमती सामानों की सूची बनाने का काम सबसे अंत में होगा

कंस्ट्रक्शन में क्या होगा

पहले मिकैनिकल एक्सपर्ट की टीम निरीक्षण करेगी

फिर सिविल एक्सपर्ट रत्न भंडार की स्थिति देखेंगे

अंत में ढांचागत निर्माण कार्य से जुड़े इंजिनियर जांच करेंगे

 तीनों की रिपोर्ट के बाद रत्न भंडार के मरम्मत का फैसला होगा

सांप कर रहे रक्षा

बताया जाता है कि आंतरिक रत्न भंडार से अक्सर फुफकारने की आवाजें आती रहती हैं। यह भी मान्यता है कि सांपों का एक समूह भंडार में रखे रत्नों की रक्षा करता है। इसीलिए रत्न भंडार को खोले जाने से पहले मंदिर समिति ने भुवनेश्वर से सांप पकड़ने में निपुण दो व्यक्तियों को पुरी बुलाया है, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति में जरूरत पड़ने र वे तैयार रहें। 

सदियों तक रेत में क्यों दबा रहा जगन्नाथ मंदिर

उत्कल क्षेत्र के राजा इंद्र देव और उनकी पत्नी रानी गुंडजा ने बड़े परिश्रम से भगवान नील माधव के लिए मंदिर बनवाया था। हुनुमान जी ने इसमें उनकी सहायती की थी। देव विश्वकर्मा बूढ़े शिल्पकार के रूप में आए और उन्होंने सशर्त भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं तैनात कर दी। अब मंदिर और देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा का प्रश्न था। इस कार्य के लिए योग्य ब्राह्मण कौन होगा। इस पर विचार होने लगा। तभी वहां देवर्षि नारद प्रकट हुए। राजा इंद्र देव ने कहा कि आप वहां नारायण के सबसे प्रिय भक्त हैं, इसलिए उनके दिव्य स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा आप ही करें। नारद ने कहा कि जब पिता मौजूद हों तो पुत्र सबसे अच्छा कैसे हो सकता है। इस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा तो ब्रह्मा जी को ही करनी चाहिए। आप मेरे साथ चलकर उन्हें आमंत्रित करें, वो जरूर आएंगे। ये सुनने के बाद राजा ब्रह्म लोक जाने के लिए तैयार हो गए। रानी गुंडजा ने कहा कि जबतक आप लौटकर नहीं आते मैं प्राणायाम के जरिए समाधि में रहकर तप करूंगा। राजा ब्रह्म लोक पहुंचकर ब्रह्मा जी से आग्रह किया। ब्रह्म देव ने राजा की बात मान ली और वो उनके साथ उत्ल क्षेत्र पहुंचे। जब वो वापस धरती पर लौटे तबतक धरती पर कई सदियां बीत चुकी थी। इस दौरान मंदिर भी समय की परतों के साथ रेत के नीचे दब गया था। एक दिन समुद्री तूफान आया और इसके कारण मंदिर का शिखर रेत के बाहर आया। इसी दौरान राजडा इंद्रदेव ब्रह्मदेव को लेकर धरती पर आ गए। रानी को भी अपने पति के लौटने का अहसास हुआ और वो समाधि से बाहर निकली। फिर ब्रह्म देव ने यज्ञ कराकर रानी और राजा के हाथों जगन्नाथ भगवान की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही भगवान जगन्नाथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ प्रकट हो गए और राजा को कई वरदान दिए। रानी की ओर मुड़ते हुए कहा कि जिस स्थान पर आपने तपस्या की वहां गुंडजा मंदिर होगा। हम तीनों भाई बहन आपके पास आया करेंगे और संसार इसे रथ यात्रा के तौर पर जानेगा। इसलिए हर साल आषाढ़ शुक्त पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। 

कहां रखे जाएंगे महाप्रभु के कीमती सामान

सागवान की लकड़ी के बने 4.5×2.5×2.5 फुट के 6 संदूकों में सारे समान रखे जाएंगे। 

48 घंटे की मेहनत के बाद 6 संदूक बने, अंदर के हिस्से में पीतल लगाया गया है।

1978 में रत्न भंडार खुला तो कितना सोना-चांदी मिला

128.38 किलो सोने के 454 सामान थे। 

221.53 किलो चांदी के 293 सामान थे। 

अंदर के कक्ष में- 43.64 किलो सोने के 367 सामान थे। 148 .78 किलो चांदी के 231 सामान थे। 

बाहर के कक्ष में- 84.74 किलो सोने के 87 सामान थे। 

73.64 किलो चांदी के कुल 62 सामान थे। 


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