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स्वामी प्रसाद मौर्य की बदजुबानी अखिलेश यादव को पड़ने लगी है भारी

स्वामी प्रसाद मौर्या की समाजवादी पार्टी के बिना कोई हैसियत नहीं है, यदि होती तो वह बीते वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा ठुकरा नहीं दिये गये होते। जिस नेता को जनता ने विधान सभा भेजने लायक नहीं समझा था, उस स्वामी प्रसाद को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने विधान परिषद भेजकर माननीय बना दिया। सपा ने 2022 के विधानसभा में स्वामी प्रसाद मौर्या को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से अपना प्रत्याशी बनाया था, जिसमे उनकी बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र कुशवाहा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। कुछ लोग कह सकते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्या पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं तो इसमें उनका कोई बड़ा योगदान नही था। दरअसल, स्वामी हवा का रूख देखकर अपनी सियासत बदलते रहते हैं, इसी लिए उनके सिर जीत का सेहरा बन जाता है, लेकिन इस बार उनका दांव उलटा पड़ गया। भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर चढ़कर चुनाव लड़ने वाले स्वामी को जब बीजेपी प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा तो इसकी वजह भी थी, दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्या को हराने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, जिस कारण स्वामी बीजेपी के एक छोटे से सिपाही से मात खा गये, इसी के बाद स्वामी ने हिन्दुओं और सनातन धर्म के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया तो अखिलेश को स्वामी प्रसाद के जरिये मुस्लिम वोट बैंक मजबूत होता नजर आने लगा। यह सब चलता रहता यदि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को बड़ी जीत नहीं हासिल होती। अब अखिलेश अपने आप को स्वामी प्रसाद के बयान से अलग दिखाने का स्वांग कर रहे हैं, लेकिन ऐसा है नहीं, यदि वाकई में अखिलेश चाह ले तों स्वामी प्रसाद मौर्या की इतनी हैसियत नहीं है कि वह हिन्दू धर्म के खिलाफ बदजुबानी करते रहें। अखिलेश हो चाहें राहुल गांधी या अन्य तमाम ऐसे नेता जो अपने आप को जनता से ज्यादा होशियार समझते हैं, उन्हें जनता लगातार हासिये पर डालती जा रही है। यह बात अखिलेश के दिमाग में जितनी जल्दी बैठ जायेगी, पार्टी के लिए उतना ही अच्छा रहेगा.समाजवादी पार्टी के भीतर से जब स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं तब न जाने अखिलेश यादव इस बदजुबान नेता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये किस बात का इंजतार कर रहे हैं। यदि अखिलेश समय रहते सचेत नहीं हुए तो जनता 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह 2024 में भी एक बार फिर से उन्हें रसातल में भेजने में देरी नहीं करेगी।

आश्चर्य की बात यह है कि सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बदजुबानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। एक बार फिर वह हिंदू धर्म पर विवादित बयान देकर अपनी ही पार्टी में घिर गए हैं। गौरतलब हो गत दिनों दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट और आरएसएस प्रमुख के बयान को आधार बनाकर कहा था कि हिंदू एक धोखा है, उनका कहना था 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदू कोई धर्म नहीं है, यह जीवन जीने की एक शैली है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी दो बार कहा चुके है कि हिंदू नाम का कोई धर्म नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि हिंदू धर्म कोई धर्म नहीं है। जब ये लोग ऐसे बयान देते हैं तो भावनाएं आहत नहीं होतीं लेकिन अगर यही बात स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं तो पूरे देश में भूचाल मच जाता है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहले रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया, फिर अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को धोखा बता दिया। स्वामी प्रसाद के बयान से सपा पल्ला झाड़ रही है तो वहीं अब इंडिया गठबंधन की उसकी सहयोगी कांग्रेस ने भी इसे लेकर मोर्चा खोल दिया है। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने मांग की है कि सपा स्वामी के खिलाफ कार्रवाई करे।

बहरहाल, अबकी से स्वामी के इस विवादित बयान से सपा के बड़े नेताओं ने भी किनारा कर लिया है। मैनपुरी सांसद डिंपल यादव ने कहा कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि यह स्वामी का निजी विचार है। उन्होंने कहा कि सपा इस बयान का समर्थन नहीं करती है। गौरतलब है कि हाल में लखनऊ में सपा ने महा ब्राह्मण समाज पंचायत का आयोजन किया था। इसमें अखिलेश के सामने स्वामी बयानों पर सवाल उठे थे। इस पर अखिलेश ने उनके बयानों को निजी बताते हुए उनसे पूरी तरह से पल्ला झाड़ने की कोशिश की थी। इस बात का भी इशारा किया था कि नेता इस तरह के बयानों से बचें।

उधर, स्वामी के बयान पर पलटवार करते हुए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि स्वामी के सनातन विरोधी बयानों से न तो हिंदू धर्म कमजोर होगा और न ही भव्य राम मंदिर का निर्माण रुकेगा। केशव प्रसाद ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जाको प्रभु दारुण दुख दीना, ताकी मति पहले हर लीना। उन्होंने कहा कि लगता है कि उनकी बुद्घि का हरण कर लिया गया है। उनको यह समझ में नहीं आ रहा है क्या बोलना चाहिए क्या नहीं। कुल मिलाकर स्वामी के विवादित बयानों से समाजवादी पार्टी को ही नुकसान उठाना पड़ जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योकि आम धारणा यही बन रही है कि स्वामी हिन्दू धर्म के खिलाफ जो जहर उगल रहे हैं, उसमें अखिलेश यादव का बड़ा योगदान है।


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