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सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकट तो बाँट दिये मगर अपने उम्मीदवारों को जिताएंगे कैसे?

आम चुनाव के नतीजे कुछ भी हों, लेकिन समाजवादी पार्टी ने करीब दो महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करने के मामले में सभी दलों को पछाड़ दिया है। ऐसा करके सपा ने भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की कोशिश की है, लेकिन उसका यह दांव कितना ठीक बैठेगा अभी कहा नहीं जा सकता है। हो सकता है कि सपा ने अपने पत्ते खोलकर भाजपा को अपनी मजबूत रणनीति  बनाने का मौका दे दिया हो। वहीं इसमें कांग्रेस के लिए भी एक संदेश छिपा है कि वह जल्द से जल्द कोई निर्णय ले ले, नहीं तो सपा को अकेले चुनाव मैदान में कूदने में संकोच नहीं होगा। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में अखिलेश यादव ने जिन 16 उम्मीदवारों के नाम घोषित किये हैं उसमें यादव कुनबे के तीन उम्मीदवार क्रमशः पत्नी डिंपल यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव का नाम सामने आया है, जिनके टिकट तय कर दिये गये हैं। सपा ने जिताऊ प्रत्याशी उतारने के चक्कर में बसपा और कांग्रेस से आए कुछ नेताओं को भी टिकट थमा दिया है। अखिलेश के इस कदम को एक तरफ इंडिया गठबंधन की आपसी राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है तो वहीं इस ऐलान को कहीं न कहीं भाजपा के दांव से उस पर ही मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की कोशिश से भी बताया जा रहा है।

    

समाजवादी पार्टी की लिस्ट पर नजर डालें तो इसमें कुछ ऐसे नेताओं को भी टिकट दिया गया है, जो कुछ समय पहले कांग्रेस छोड़कर पार्टी में पहुंचे हैं। इनमें अन्नू टंडन का नाम सबसे प्रमुख है। अन्नू टंडन पुरानी कांग्रेसी हैं। उन्नाव से वह सांसद भी रह चुकी हैं। हालांकि इस सीट से फिलहाल भाजपा के साक्षी महाराज सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अन्नू टंडन कांग्रेस से प्रत्याशी थीं और तीसरे स्थान पर रही थीं। समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। अब अन्नू टंडन को सपा से टिकट मिला है। इसी तरह अकबरपुर लोकसभा सीट से सपा ने राजाराम पाल को प्रत्याशी बनाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजाराम कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे। वह तीसरे नंबर पर रहे थे। उस चुनाव में ये सीट सपा-बसपा गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई थी। बसपा दूसरे नंबर पर रही थी और जीत भाजपा के देवेंद्र सिंह भोले की हुई थी। इसी प्रकार से समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को झटका देते हुए फर्रूखाबाद से डॉ. नवल किशोर शाक्य को प्रत्याशी बनाया है। फर्रूखाबाद सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद चुनाव लड़ते रहे हैं। 2019 में सलमान खुर्शीद तीसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर भी गठबंधन के तहत बसपा ने मनोज अग्रवाल को टिकट दिया था, जो दूसरे नंबर रहे थे। भाजपा के मुकेश राजपूत ने यहां से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस लखनऊ लोकसभा सीट पर भी हर बार जोर लगाती रही है। पिछली बार प्रमोद कृष्णम को यहां से प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन काफी कोशिश के बाद भी कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर रही थी। पिछली बार सपा-बसपा गठबंधन के तहत इस सीट पर सपा ने फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को मैदान में उतारा था लेकिन वह भी दूसरे स्थान पर ही रही थीं। इस बार समाजवादी पार्टी ने आगे बढ़ते हुए पहले ही रविदास मेहरोत्रा को प्रत्याशी ऐलान कर दिया है। अब देखना ये होगा कि क्या कांग्रेस इन्हें समर्थन देती है फिर कोई और फैसला लेगी।

सपा ने कुछ पुराने सांसदों को भी टिकट दिया है, इसमें सबसे चर्चित नाम संभल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क का है, जो इस समय सबसे उम्र दराज सांसद हैं। बर्क की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता वाली रही है। वह अयोध्या में रामलला के मंदिर के निर्माण से लेकर इसको लेकर दिये गये सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल खड़ा करने में सबसे आगे रहे थे। मोदी के कट्टर विरोधी बर्क पर एक बार फिर अखिलेश ने भरोसा जताया है। डॉ शफीकुर्रहमान बर्क पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े मुस्लिम नेता के रूप में जाने जाते हैं। वे पांच बार के सांसद और चार बार विधायक रहे हैं। बर्क 2019 में सपा के टिकट पर संभल लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे। चार बार के विधायक डॉ. बर्क ने 1996 में सपा के टिकट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता था। हालांकि, 2009 में वे मायावती की बसपा के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। वह पहली बार 1974 में बीकेडी के टिकट पर संभल से विधायक बने थे। 1996 में सपा उम्मीदवार के तौर पर मुरादाबाद से लोकसभा सांसद बने डॉ. बर्क की पश्चिमी यूपी की राजनीति पर पकड़ के कारण ही अखिलेश उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं।

डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क वर्ष 2014 में पहली मोदी लहर में जरूर चुनाव हार गये थे। उन्हें भारतीय जनता पार्टी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। यह पहला मौका था जब उन्हें संभल सीट से हार झेलनी पड़ी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह ने सपा के कद्दावर नेता को 5174 वोटों से मात दी थी। इस चुनाव में सत्यपाल सिंह को 3,60,242 वोट मिले थे। वहीं, डॉ. बर्क 3,55,068 वोट हासिल कर पाए थे। इस चुनाव में बसपा तीसरे स्थान पर रही थी। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन का फायदा डॉ. बर्क को मिला। इस चुनाव में डॉ. बर्क 6,58,006 और भाजपा के परमेश्वर राव सैनी को 4,83,180 वोट मिले थे। डॉ. बर्क ने मोदी-योगी लहर के बाद भी 1,74,826 वोटों से जीत दर्ज कर अपनी सीट पर दोबारा कब्जा जमाया था।

बात भाजपा की बात करें तो वह प्रत्याशियों का ऐलान हमेशा से पहले करती रही है। हाल ही में हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब भाजपा ने छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश चुनाव में पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली थी। यूपी में वैसे तो बहुजन समाज पार्टी का सबसे पहले प्रत्याशियों के ऐलान का इतिहास रहा है। कई बार तो ये स्थिति देखी गई जब चुनाव के कई महीने पहले ही प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया गया और चुनाव आते-आते दो बार टिकट बदल भी दिया गया। लेकिन पिछले कुछ चुनावों से बसपा का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा है। इसका सीधा असर टिकट बंटवारे में भी देखने को मिलता रहा है। बसपा को कायदे के उम्मीदवार भी नहीं मिल पा रहे हैं। यही हाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का है। वह दो दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा तो कर रही है, लेकिन दमदार प्रत्याशियों का उसके यहां भी टोटा है। कुल मिलाकर सपा टिकट बांटने में जरूर अव्वल नजर आ रही है, लेकिन उसकी चुनावी डगर में फूल और शूल दोनों नजर आ रहे हैं।

-अजय कुमार


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