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अमेरिका की टॉप यूनिवर्सिटीज में इतना हंगामा क्यों मचा है? प्रदर्शन के पीछे का जॉर्ज सोरोस कनेक्शन, भारत ने मौके पर कैसे मारा चौका

जंग तो इजरायल और गाजा में हो रही है, लेकिन अमेरिका में कोहराम मचा है। दुनियाभर की सबसे बड़ी और मशहूर यूनिवर्सिटी में आजकल हालात का अंदाजा सामने आई तस्वीरों से लग जाएगा। अमेरिका के कॉलेज दुनिया के महंगे कॉलेजों में से एक हैं। जहां पढ़ने के लिए करोड़ों खर्च करने पड़ते हैं। न जाने कितने एग्जाम पास करने पड़ते हैं। उन कॉलेजों में आजकल न किताबें पढ़ी जा रही हैं ना क्लास हो रही है। वहां इन दिनों विद्रोह, नारेबाजी और गिरफ्तारियां होती दिख रही हैं।  अमेरिका में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन इतना बड़ा हो गया है कि ये 25 यूनिवर्सिटी तक फैल चुका है। जिसमें कोलंबिया, येल, टेक्सस, ऑस्टीन, लॉस एंजलिस जैसी नामी यूनिवर्सिटी शामिल हैं। अमेरिका का कॉलेजों में फिलिस्तीन को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी छात्र इजरायल से रिश्ता तोड़ने और गाजा में संघर्ष विराम जैसी मांगों पर अड़े हुए हैं। उन्होंने कैंपस में तंबू लगा लिया और मांगे पूरी होने तक वहीं बने रहने की बात करते नजर आए। इस प्रदर्शन की शुरुआत न्यूयॉर्क में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से हुई थी। धीरे धीरे ये अमेरिका के पूरे कॉलेजों में फैल गई। यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से प्रदर्शनकारी छात्रों को हटाने की भरसक कोशिश की गई। पुलिसिया कार्रवाई में सैकड़ों छात्रों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। लेकिन फिर भी वे पीछे हटने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि अमेरिका में फिलीस्तीन सपोर्ट वाले प्रदर्शन की कहानी क्या है? इन प्रदर्शनों का अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है। भारत ने अमेरिका को क्या नसीहत दी है और इस प्रदर्शन में जॉर्ज सोरेस का एंगल क्या है। 

दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में 93 गिरफ्तार

दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में बुधवार के प्रदर्शन के दौरान अतिक्रमण के संदेह में 93 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। सार्वजनिक सुरक्षा उपाध्यक्ष चेरिल इलियट के अनुसार, स्कूल में विरोध प्रदर्शन के दौरान 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 20 एमोरी समुदाय के सदस्य भी शामिल थे। जॉर्जिया राज्य गश्ती दल के अनुसार, विरोध प्रदर्शन के दौरान सैनिकों ने अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ब्लैक पिपर के गोले का इस्तेमाल किया। जॉर्जिया के एमोरी विश्वविद्यालय से सामने आए दृश्यों में, सुरक्षा बल फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों को पीटते, आंसू गैस छोड़ते और कथित तौर पर भीड़ और प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां चलाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

विश्वविद्यालय परिसर में स्नूपर्स

ओहियो यूनिवर्सिटी का एक वीडियो वायरल हो गया है जिसमें ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी और इंडियाना ब्लूमिंगडेल यूनिवर्सिटी की छतों पर कुछ स्नाइपर्स देखे गए। हालाँकि, विश्वविद्यालय के प्रवक्ता बेन जॉनसन ने स्पष्टीकरण में कहा कि छतों पर देखे गए लोग राज्य के सैनिक हैं। इस बीच, इंडियाना यूनिवर्सिटी के पुलिस विभाग ने कहा कि डन मीडो में तंबू इकट्ठा करने से कैंपस कानूनों का उल्लंघन हुआ और उन्हें हटाने से इनकार करने पर 33 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

 विरोध प्रदर्शनों के पीछे जॉर्ज सोरोस और रॉकफेलर ब्रदर्स की फंडिंग

प्रमुख अमेरिकी विश्वविद्यालयों में चल रहे फिलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शनों के बीच, यह पता चला है कि जॉर्ज सोरोस और रॉकफेलर ब्रदर्स फंड जैसे लोग प्रदर्शनकारियों को वित्त पोषित कर रहे हैं और परिसरों में अशांति पैदा कर रहे हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) में प्रकाशित एक टिप्पणी में पत्रकार इरा स्टोल ने जोर देकर कहा कि अमेरिका की दो सबसे बड़ी परोपकारी संस्थाओं द्वारा देश भर के परिसरों को बाधित करने वाली हरकतों के लिए कार्यकर्ताओं को भुगतान किया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार का कहना है कि यहूदी विरोधी विरोध प्रदर्शन में शामिल मलक अफ़ानेह और क्रेग बिर्कहेड-मॉर्टन नामक दो छात्र कार्यकर्ताओं को बाद में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए थे। इरा स्टोल के अनुसार, फ़िलिस्तीनी अधिकारों के लिए अमेरिकी अभियान 3 महीने के लिए 8 घंटे/सप्ताह के काम के लिए ‘कैंपस-आधारित अध्येताओं’ को $2880-$3360 का भुगतान करता है। उन्होंने कहा कि फेलोशिप को ‘एजुकेशन फॉर जस्ट पीस इन द मिडिल ईस्ट’ द्वारा प्रायोजित किया गया जिसे 2018 से जॉर्ज और एलेक्स सोरोस द्वारा संचालित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) से $7,00,000 प्राप्त हुए थे।

भारत ने क्या कहा?

भारत के विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राज्य भर के कॉलेजों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विभिन्न परिसरों में पुलिस अधिकारियों ने सैकड़ों प्रदर्शनकारी छात्रों को गिरफ्तार कर लिया है, जिससे अधिकारों के हनन की चिंताएं पैदा हो गई हैं। नई दिल्ली ने वाशिंगटन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की सलाह दी है। चूंकि भारत परंपरागत रूप से अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचता है, इसलिए यह नवीनतम बयान नीति में बदलाव को दर्शा सकता है। अतीत में, अमेरिका ने नए नागरिकता कानून और किसानों के विरोध से जुड़े घरेलू नीतिगत फैसलों पर भारत की आलोचना की है। ऐसे में क्या जा रहा है कि भारत अब अमेरिका को अपनी ही दवा का स्वाद चखाने की कोशिश कर रहा है?

बाइडेन-नेतन्याहू ने क्या कहा?

अमेरिका में इजरायल विरोध प्रदर्शनों को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खतरनाक बताया है। उन्होंने इस प्रदर्शनों को रोकने के लिए और कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इतना ही नहीं, नेतन्याहू ने इन प्रदर्शनों की तुलना नाजी जर्मनी से भी कर दी। वहीं व्हाइट हाउस ने भी इन प्रदर्शनों की निंदा करते हुए इसकी तुलना आतंकवादियों की भाषा से की है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इनकी निंदा की है। बाइडेन ने मीडिया से बात करते हुए न सिर्फ इजरायल विरोधी प्रदर्शनकारियों की निंदा की, बल्कि उन लोगों की भी आलोचना की जिन्हें ये नहीं पता कि फिलिस्तीन में क्या चल रहा है।


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