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Prayagraj की जनता क्या बदलने वाली है राज? Chunav Yatra के दौरान हमने जो देखा वो सचमुच चौंकाने वाला था

उत्तर प्रदेश का प्रयागराज क्षेत्र गंगा यमुना और सरस्वती का संगम स्थल है। प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर लगने वाले कुंभ मेले की आयोजन स्थली प्रयागराज ने देश को पंडित जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, हेमवंती नंदन बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र और मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनीतिज्ञ और अमिताभ बच्चन जैसा फिल्मी सुपर स्टार दिया है।

इलाहाबाद के नाम से मशहूर इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रयागराज कर दिया था। चूंकि इस क्षेत्र को पौराणिक काल में प्रयागराज ही कहा जाता था इसलिए योगी सरकार ने पुराना नाम बहाल कर दिया और इस क्षेत्र का पुराना सांस्कृतिक गौरव बहाल करने की दिशा में तमाम कदम उठाए जिससे इस क्षेत्र की सूरत बदलने लगी है। अगले साल होने वाले महाकुंभ के आयोजन से जुड़ी तैयारियों के चलते इस समय पूरे प्रयागराज में जहां तहां निर्माण कार्य चल रहे हैं जिसके चलते कुछ जगह नाराजगी भी दिखी क्योंकि जिनके अवैध निर्माण तोड़े गए हैं उनकी नजर में सरकार गलत काम कर रही है।

कुछ समय पहले तक प्रयागराज में माफियाओं का आतंक हुआ करता था लेकिन अब पूरी तरह कानून का राज है जिसके चलते जनता निर्भीक होकर अपना जीवन जी पा रही है। लेकिन महंगाई और बेरोजगारी ऐसी बड़ी समस्याएं हैं जिसके चलते लोग सरकार से बेहद नाराज हैं और इस बार बदलाव करके देखना चाहते हैं।

हम आपको बता दें कि प्रयागराज में पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे भाजपा उम्मीदवार नीरज त्रिपाठी पूर्व राज्यपाल और पूर्व विधान सभा अध्यक्ष स्व. केशरी नाथ त्रिपाठी के बेटे हैं। उनका मुकाबला सपा के सांसद रहे रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमन से है। बसपा यहां चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रही है। ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में नीरज त्रिपाठी को अपने पिता के नाम से पहचान, मोदी सरकार के कामकाज की बदौलत जनता का प्यार तो मिल ही रहा है साथ ही राम मंदिर और हिंदुत्व जैसे मुद्दे भी उनके पक्ष में माहौल बना रहे हैं। हालांकि पेपर लीक की घटनाओं के चलते युवाओं और महंगाई से परेशान लोगों की नाराजगी तथा बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों से नीरज त्रिपाठी को जूझना भी पड़ रहा है।

प्रभासाक्षी ने अपनी चुनाव यात्रा के दौरान पाया कि यहां गंगा पार और यमुना पार की जनता के लिए अलग अलग मुद्दे हैं। नैनी औद्योगिक क्षेत्र में कई उद्योग बंद हो चुके हैं। जनता का कहना है कि इसके पीछे सरकारी उदासीनता भी एक कारण है। लोगों ने कहा कि सरकार निवेश आमंत्रित करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करके अपने मंत्रियों को विदेशों में भेज रही है लेकिन स्थानीय उद्योगपतियों को सहूलियतें नहीं दे रही है। वैसे लगातार दो बार से भाजपा यहां जीत हासिल कर रही है लेकिन इस बार उसके पक्ष में लहर जैसी स्थिति देखने को नहीं मिली। लोग सरकार से जगह जगह सवाल कर रहे हैं। हर साल दो करोड़ नौकरी देने के वादे की याद दिला रहे हैं। महिलाएं सुरक्षित तो महसूस कर रही हैं लेकिन उनके किचन का बजट बिगड़ने से वह परेशान हैं।

दूसरी ओर उज्ज्वल रमन पूरा जोर ग्रामीण इलाकों पर लगाए हुए हैं। उनका मानना है कि विधायक रहते हुए उन्होंने जिस तरह विकास कार्य करवाए उससे जनता प्रभावित है। प्रभासाक्षी से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनके पिता और पूर्व सांसद रेवती रमण सिंह की ओर से किए गए कामों का लाभ भी उनको मिल रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ग्रामीण क्षेत्रों से मुंह मोड़ चुकी है इसलिए जनता इस बार मोदी योगी की जोड़ी को सबक सिखाने के लिए तैयार है।

हम आपको बता दें कि कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी से ली है। हालांकि यहां कांग्रेस से ज्यादा समाजवादी पार्टी मजबूत है लेकिन फिर भी राहुल गांधी ने अखिलेश यादव से कह कर अपनी पार्टी के लिए यह सीट ली ताकि वह कांग्रेस को यहां मजबूत कर सकें। वैसे देखा जाए तो गठबंधन के तहत भले यह सीट चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस को मिली हो परंतु उम्मीदवार सपा का ही है। कांग्रेस उम्मीदवार उज्ज्वल रमन सपा नेता रेवती रमण सिंह के बेटे हैं और हाल ही में सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे ताकि पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकें।

हालांकि राहुल गांधी ने छात्रों की नाराजगी को भुनाने के लिए यह सीट सपा से ले तो ली लेकिन उन्होंने इस बुनियादी चीज पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय हो या यहां के अन्य शिक्षण संस्थान, उसमें पढ़ने के लिए ज्यादातर छात्र अन्य जिलों या राज्यों से आते हैं जोकि यहां के वोटर नहीं हैं।

हम आपको बता दें कि प्रयागराज में ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ समाज का बाहुल्य है। चौथे नंबर पर यहां मुस्लिमों की आबादी है। प्रयागराज के कोरांव विधानसभा क्षेत्र में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है।


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