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इधर मोदी ने ली शपथ, उधर दोस्त मैक्रों ने भंग कर दी संसद, भारत पर क्या होगा असर?

जिस उमर में आप इस बात के लिए खर्च हो रहे होते हैं कि बारहवीं के बाद कौन से कोर्स में दाखिला ले। उस उमर में आप राष्ट्रपति बन सकते हैं। आज आपको ऐसे देश की कहानी सुनाने जा रहे हैं जहां वोटर के लिए पात्रता 18 बरस है और सर्वशक्तिशाली पद यानी राष्ट्रपति के पद के लिए पात्रता 18 बरस है। आप कह रहे होंगे की अभी अभी तो मोदी सरकार 3.0 का शपथ ग्रहण समारोह हुआ है और हम ये कहां फ्रांस की बता कर रहे हैं। दरअसल, प्रिय नरेंद्र के दोस्त और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने चौंकाने वाला कदम उठाते हुए नेशनल असेंबली भंग कर दिया है। उन्होंने यूरोपीय संसद के चुनाव में पार्टी की बड़ी हार को देखते हुए ये फैसला लिया है। एग्जिट पोल के अनुमानों के अनुसार मैक्रों की रिनेसा पार्टी को यूरोपीय यूनियन संसदीय चुनाव में मरीव ली पेन की दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली से हार का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना आज आपको दिल्ली से 6500 किलोमीटर दूर पेरिस लिए चलते हैं। आज फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव का एमआरआई स्कैन करेंगे। जानेंगे कि फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव का प्रोसेस क्या है। इस बार के मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की दावेदारी क्या कमजोर हुई है और इस चुनाव के नतीजों से क्या बदलने वाला है। 

विश्व की सातवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी

फ्रांस यूरोप महाद्वीप में पड़ता है और इसकी आबादी सात करोड़ के लगभग है। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, यूके और भारत के बाद दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है। फ्रांस पहले और दूसरे विश्व युद्ध का विजेता रह चुका है। यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है। इनके पास एटम बम भी है। इसके अलावा फ्रांस यूरोपीयन यूनियन और नाटो का संस्थापक सदस्य है। 

राष्ट्रपति की योग्यता 

आपके पास फ्रांस की नागरिकता होना जरूरी है। उमर 18 साल या उससे ज्यादा। किसी अदालत द्वारा आपको आयोग्य घोषित न किया गया हो। आपका अपना बैंक अकाउंट होना चाहिए। उम्मीदवार को कम से कम 500 चुने हुए प्रतिनिधियो के हस्ताक्षर चाहिए। हस्ताक्षर करने वालों में सांसद और मेयर शामिल हैं। दस्तखत नहीं होने पर उम्मीदवारी खारिज हो जाएगी। फ्रांस में राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है। 2000 से पहले फ्रांस के राष्ट्रपति का कार्यकाल 7 साल का होता था। राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान किसी दूसरे पद पर काम नहीं कर सकता है। इसे जनता सीधे चुनती है। राष्ट्रपति के नाम पर सीधे वोट डाले जाते है। राष्ट्रपति के चुनाव के बाद नेशनल असेंबली के चुनाव कराए जाते हैं। 

राष्ट्रपति को नेशनल असेंबली को भंग करने की पावर

फ्रांस में हमारी तरह ही दो सदनों वाली व्यवस्था है। नेशनल असेंबली जैसे अपने यहां लोकसभा है, जबकि ऊपरी सदन को सेनेट के नाम से जाना जाता है। नेशनल असेंबली सेनेट की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली होती है। राष्ट्रपति का पद और नेशनल असेंबली का चुनाव कुछ ही समय के अंतराल पर होता है इसलिए नेशनल असेंबली में चुने गए लोग राष्ट्रपति के प्रति वफादार रहते हैं। मतलब पब्लिक का मूड कमोबेश राष्ट्रपति चुनाव जैसा ही नेशनल असेंबली में भी दिखता है। फ्रांस में प्रेसिडेंशियल और पार्लियामेंट्री दोनों सिस्टम एकसाथ काम करते हैं। फ्रांस में राष्ट्रपति कार्यपालिका और सेना का मुखिया होता है। सही मायनों में इन शक्तियों का अपने विवेक के अनुसार प्रयोग कर सकता है। विदेश नीति भी राष्ट्रपति द्वारा तय की जा सकती है और इसके लिए उसे संसद की सहमति की जरूरत नहीं होती है। राष्ट्रपति को नेशनल असेंबली को भंग करने का और अपने पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए नॉमिनेट करने और पिंक क्लिप थमाने का भी हक है। पब्लिक मीटिंग की अध्यक्षता के साथ ही संसद की बैठक बुलाने का भी पावर है। 

नेशनल असेंबली में हार से मैक्रों पर असर?

फ्रांस की नेशनल असेंबली में 577 सदस्य होते हैं। जैसा की हमने आपको पहले बताया कि वहां पर राष्ट्रपति पद के लिए अलग से चुनाव होता है। ऐसे में यदि रिनेसा पार्टी की हार होती है तो भी मैक्रों की सेहत पर कुछ खास असर नहीं पड़ने वाला है। हालांकि मरीन ली पेन की नेशनल रैली यदि नेशनल असेंबली में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो मैक्रों बेहद कमजोर राष्ट्रपति बन जाएंगे और उन्हें संसद में अहम फैसले लेने के लिए विपक्षी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ेगा। 

फ्रांस में दूसरे देशों से अलग चुनाव

फ्रांस में अप्रैल 2022 में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे। इसमें दूसरे चरण की वोटिंग में इमैनुएल मैक्रों को जीत हासिल हुई थी। फ्रांस में यदि पहले चरण की वोटिंग में किसी को 50 प्रतिशत वोट नहीं मिलता है तो दूसरे चरण की वोटिंग होती है। दूसरे चरण की वोटिंग में मैक्रों को 58.5 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं मरीन ली पेन को 41.5 प्रतिशत वोट मिले। फ्रांस के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि कोई उम्मीदवार पहले चरण में 50 प्रतिशत वोट हासिल कर राष्ट्रपति बन गया हो। 


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