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Interview: Article 370 हटाये जाने के कानूनी पहलुओं को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे से बातचीत

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करके दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। जिस पर खूब राजनीतिक विरोध हुआ, तब सरकार को कठोर भी होना पड़ा। विरोधी नेताओं को महीनों नजरबंद करना पड़ा। मामला सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा, जिस पर विगत दिनों फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार के निर्णय को जायज ठहराया। कोर्ट का साफ कहना है कि अनुच्छेद-370 जम्मू-कश्मीर के लिए अस्थायी प्रावधान था और उसे निरस्त करने का हक राष्ट्रपति को है। फैसले को कानून की नजर से कानूनविद् व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी दुबे कैसे देखते हैं। इस संदर्भ में उनसे पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

प्रश्नः सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- स्वागत योग्य निर्णय है। भारत का अभिन्न अंग कहा जाने वाला प्रदेश जम्मू-कश्मीर कागजों में बेशक एक रहा हो, लेकिन मौखिक रूप से अनुच्छेद-370 के रहते वो हिंदुस्तान से सदैव कटा ही रहा। पर, अब एकीकृत हो चुका है। पढ़ा-लिखा समाज और कानून के ज्ञाता अच्छे से समझते थे कि अनुच्छेद-370 अस्थाई था और पूर्णतः विभाजनकारी भी। उसके हटने से मातम नहीं मनाना चाहिए, बल्कि खुश होना चाहिए। हालांकि, मुठ्ठी भर लोग अब भी विरोध में हैं और शायद आगे भी रहेंगे। लेकिन एक वक्त आएगा जब वह भी अपने निर्णय पर पछताएंगे। अनुच्छेद-370 के हटने से जम्मू-कश्मीर में हर ओर सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जहां तक मेरा मत है जब कानून ने अपनी सुप्रीम मुहर लगा दी है तो अब बिना वजह का विरोध नहीं करना चाहिए।

प्रश्नः क्या वहां अब सुधार होगा। वैसे, अनुच्छेद के हटने से फायदे क्या हैं और रहने के नुकसान क्या थे?  

उत्तर- देखिए, जहां तक नुकसान की बात है तो अनुच्छेद-370 के रहते केंद्र की सरकार जम्मू-कश्मीर में वित्तीय आपातकाल घोषित करने के सक्षम नहीं थी। अनुच्छेद-370 (1) (सी) में उल्लेख है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1, अनुच्छेद-370 के माध्यम से कश्मीर में लागू नहीं होगा। क्योंकि अनुच्छेद-1 संघीय राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इस अनुच्छेद के मुख्य प्रारूपकार ‘अय्यंगर’ थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर को स्थानीय स्वायत्तता प्रदान की थी। फायदे की बात करें, तो कानून में इस अनुच्छेद का कोई उल्लेख नहीं है। इसके हटने से पूरे भारत का एकीकरण हुआ है। ‘एक देश, एक विधान’ का नारा पूरा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के गांव-गांव और प्रत्येक घरों में जैसे खुशहाली पंजाब-हरियाणा में मनेगी, वैसा ही माहौल अब वहां होगा।

प्रश्नः जम्मू-कश्मीर की लोकल लीडरशिप, जैसे महबूबा मुफ़्ती फ़ैसले को ’आइडिया ऑफ़ इंडिया’ की हार बता रही हैं?

उत्तर- ये मसला अंतर्विरोध का रहा है। अनुच्छेद-370 और 35ए दोनों जम्मू-कश्मीर को राष्ट्रीय एकता की मुख्यधारा से अलग करते थे। पूर्व में वहां, के राजा ने कई मर्तबा कहा भी था कि इससे विकास बाधक हो रहा है। लेकिन उनकी बातों को पूर्ववर्ती सरकारों ने अनसुना किया। तभी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सबसे पहले कांग्रेस नेता कर्ण सिंह ने स्वागत किया। जहां तक बात महबूबा मुफ़्ती या एकाध और वहां के स्थानीय नेताओं की है, वो सभी विघटनकारी विचारधारा के चुंगल से अभी नहीं निकले हैं। मैं, तो ये कहता हूं, कोर्ट ने उनकी ही बातों का अनुसरण किया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को तल्खी से कह दिया है कि प्रदेश में जल्द चुनाव कराए जाएं। महबूबा मुफ़्ती अगर वास्तव में वहां की आवाम का भला चाहती हैं तो चुनाव जीतें, अपनी हुकूमत स्थापति करें, फिर केंद्र की सहायता से वहां रूके विकास कार्यों को आरंभ करें। गलत बयानबाजी और लोगों को बरगलाने से क्या फायदा होगा।

प्रश्नः लीगली पहलुओं से भी ‘गुपकार सदस्य’ नहीं समझ पाए, विरोध पर अड़े हुए हैं?

उत्तर- विरोध का तुक नहीं बनता अब। देखिए, न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि समूचा संसार इस सच्चाई से वाकिफ है कि अनुच्छेद-370 संकीर्ण राजनीतिक फायदों के लिए वर्षों-वर्ष प्रयोग किया जाता रहा। दुख इस बात का था कि पाकिस्तानी विचारधारा पूरी तरह से घुली मिली थी। केंद्र का भेजा पैसा जनकल्याणकारी योजनाओं में न जाकर नेताओं की जेब में पहुंचता था। इसलिए कोर्ट ने माना है कि अस्थाई प्रावधान को स्थाई बनाए रखने का अब कोई तुक नहीं। औचित्य यही था इसे खत्म किया जाए।

प्रश्नः केंद्र सरकार को कोर्ट ने जल्द चुनाव कराने को भी कहा है।

उत्तर- बिना देर किए चुनाव होने चाहिए। प्रदेश की जनता के हितों को देखते हुए कोर्ट बहुत फिकरमंद है। कोर्ट चाहती है कि वहां की आवाम को उनका स्टेटहुड अब बिना देर किए वापस मिले। चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने तभी केंद्र सरकार को जोर देकर कहा है कि अब आर्टिकल 370 हट गया है। अपनी चुनावी प्रक्रियाएं पूरी करके 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराएं। मैं भी इस फैसले का पक्षधर हूं, वहां तुरंत चुनाव करवाए जाएं, लोगों को चुनी हुई सरकार मिले ताकि अन्य राज्यों की तरह वहां भी विकास कार्य सुचारू रूप से शुरू हों। वहां लंबे समय से राज्यपाल शासन लगा हुआ। मुझे लगता है ऐसी स्थिति में ज्यादा विकास होने की संभावना कम रहेगी। इसलिए प्रदेश को मुख्यमंत्री मिले जो लोगों की जरूरतों को पूरा कर सके।

प्रश्नः मामले को लेकर कपिल सिब्बल अच्छी पैरवी कर रहे थे, लेकिन अंत में उन्होंने भी पत्ते डाल दिए?

उत्तर- मैं उनका सम्मान करता हूं, बहुत सीनियर हैं। इसलिए इस विषय पर मैं ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहता। लेकिन निर्णय के दिन उनका एक ट्वीट आया था, जो बहुत कुछ कहता है। उन्होंने लिखा था कि ’कुछ लड़ाइयां हारने के लिए लड़ी जाती हैं’। उनका इशारा था कि अच्छे काम की सभी को सराहना करनी चाहिए। वैसे, एक वकील का काम अपना फर्ज निभाना होता है। मुझे लगता है कपिल सिब्बल ने भी अपने दायित्व को ईमानदारी से निभाया।

-डॉ. रमेश ठाकुर

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।)


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